विश्व- परम्परा में देवी

You are currently viewing  विश्व- परम्परा में देवी

 विश्व- परम्परा में देवी

सृष्टि के आरंभ से ही देवी माँ का स्वरूप विद्यमान रहा है। देवी की आराधना शक्ति की आराधना है। शक्ति का अर्थ होता है ऊर्जा, सामर्थ्य, क्षमता, अन्तः शक्ति। देवी का मतलब होता है, ज्योतिर्मय, देदीप्यमान, द्युतिमान्, अन्तर की ज्योति। सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों, जातियों एवं जनजातियों में प्राचीन काल से ही देवी माँ की पूजा विभिन्न नामों, रूपों और परम्पराओं में होती रही है। वैदिक परम्परा में मातृशक्ति, दैवी शक्ति को सर्वोच्च सत्ता माना गया है। जगन्माता, देवी माँ, जगज्जननी ही परम सत्य है। तन्त्र में शक्ति ही आद्य ऊर्जा है, जो सृष्टि का कारण है। प्राचीन जगत् में सभी सभ्यताओं में शिव-शक्ति की पूजा होती रही है। आदि शक्ति को प्रथम स्रष्टा माना जाता है। हालाँकि पितृ सत्तात्मक धर्म इसे स्वीकार नहीं करते हैं। विश्व में दो आध्यात्मिक परम्परायें विद्यमान हैं-एक मातृ सत्तात्मक है और दूसरी पितृ सत्तात्मक। मातृ सत्तात्मक परम्पराओं में ईश्वर को जगन्माता, दवी, प्रकृति-शक्ति के रूप में माना गया है। पितृ सत्तात्मक परम्पराओं में सृष्टिकर्ता ईश्वर को पिता माना गया है, माँ नहीं । यहूदी, ईसाई और स्लाम धर्म पितृ सत्तात्मक हैं। तंत्र, हिन्दू, बौद्ध और पारसी धर्म, शिन्तो त, ताओवाद और अमेरिका की आदिवासी परम्परायें मातृ सत्तात्मक हैं। अनेक जनजातीय परम्पराओं में आज भी सृष्टिकर्ता के रूप में माँ की वधारणा पायी जाती है। वे अपनी-अपनी संस्कृति के अनुसार किसी-न कसी देवी की पूजा करते हैं। देवी की पूजा वे वैदिक या तान्त्रिक कर्मकाण्डों भले ही न करते हों, परन्तु अपने रीति-रिवाजों के अनुसार आज भी वे देवी माँ की पूजा करते हैं। दक्षिण अमेरिका के देशों में अभी अनेक जनजातियाँ हैं, जिनकी देवी माँ की पूजा की अपनी विधियाँ हैं। उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी प्रकृति या धरती माँ से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। वे मानते हैं कि प्रकृति में कोई अदृश्य शक्ति है और अगर कोई सही ध्वनि उत्पन्न कर सके, तो वह उस व्यक्ति को देख और सुन सकती है। यह परम्परा आज भी हर जगह है, पर अदृश्य, रहस्यमय देवत्व सदा गुप्त रहता है। तन्त्र में इसे शक्ति कहते हैं, पर तुम देवी, माँ आदि भी कह सकते हो। मिश्र की प्राचीन सभ्यता में यह अवधारणा थी कि यह ब्रह्माण्ड देवी माँ और सूर्यदेवता की परस्पर क्रीड़ा है। सिखों के पावन ग्रन्थ गुरुग्रन्थ साहिब में वे अस्तुति भवानी हैं। जापान के पारम्परिक गाँवों एवं नगरों में प्राचीन मन्दिर हैं, जिन पर वैदिक और बौद्धमत का प्रभाव दिखायी देता है और वहाँ विभिन्न रूपों में देवी की मूर्तियाँ भी हैं। स्पेन के मानसेरात में काली मैडोना की मूर्ति की पूजा बारहवीं सदी से होती आ रही है। अनेक वर्षों में धुएँ के कारण यह मूर्ति काले रंग की हो गई है और काली की तरह लगती है। समय बीतने के साथ सामाजिक परम्पराओं ने माँ को पीछे कर दिया। ईसाई, इस्लाम और यहूदी धर्म ने भी ऐसा ही किया। परन्तु इसका मुख्य कारण आध्यात्मिक नहीं, सामाजिक है। उन्होंने ईश्वर को परम पुरुष माना, इसलिए देवियों को कम महत्त्व दिया जाने लगा। के ग्रीक के साथ-साथ इस्लाम और ईसाई धर्मों के प्रभावों के कारण ईश्वर पुरुष होने की अवधारणा सारी पृथ्वी पर फैल गयी और व्यापक रूप से यह माना जाने लगा कि ईश्वर ही सर्वोच्च सत्ता है और उससे परे कुछ नहीं है। फलस्वरूप स्त्रियों के मानवाधिकार पर से ध्यान प्रायः हट सा गया, क्योंकि अधिकतर धर्मों में स्त्री को निम्न या हीन माना जाने लगा। परन्तु शाक्त मत में ऐसा नहीं था । मातृ सत्तात्मक होने के कारण इसने स्त्री की आध्यात्मिक स्थिति को ऊँचा माना ।

आज अनेक लोग प्राचीन मातृ सत्तात्मक परम्पराओं के बीजों में एक नये
आधार की खोज कर रहे हैं, जिस पर एक अधिक सामंजस्यपूर्ण जगत् का
निर्माण किया जा सके। एक बार फिर सम्पूर्ण विश्व मातृ सत्तात्मक व्यवस्था
की ओर चल पड़ा है और मातृ सत्तात्मक व्यवस्था में ईश्वर माँ हैं।

Leave a Reply