
श्रीअवध महिमा
चैत्रे मासि च सम्प्राप्ते नवमी दिनमाश्रितः। योऽभिगच्छति वै भद्रे ह्ययोध्यां सरयूं प्रति ॥ फलं तत्राक्षयं देवि भवतीत्यनुशुश्रुम।
सायं प्रातः स्मरेद्यस्तु ह्ययोध्यां च कृताञ्जलिः ॥ उपस्पृष्टानि तीर्थानि त्वयोध्यायाश्चभामिनि । विष्णोः पादमवन्तिकां गुणवतीं मध्यं च काँची पुरीं। नाभि द्वारवतीं पठन्ति हृदयं मायापुरीं योगिनः ॥ ग्रीवामूल मुदाहरन्ति मथुरां नासां च वाराणसी- मेतद्ब्रह्म पदं वदन्ति मुनयोऽयोध्यापुरी मस्तकम् ॥ जन्म प्रभृति यत्पापं स्त्रिया वा पुरुषस्य वा । अयोध्या स्नान मात्रेण सर्वमेव प्रणश्यति ॥ यथा सुराणां सर्वेषामादिश्च मधुसूदनः । तथैव क्षेत्रतीर्थानामयोध्या त्वादिरुच्यते ॥
श्री भगवान् शंकर जी ने श्री अवध की महिमा श्री पार्वती जी से वर्णन करते हुए बतलाया कि – हे देवि ! चैत्र की शुक्ल नौमी तिथि में जो भी प्राणी अयोध्या में आकर श्री सरयू में स्नान करता है, वह अक्षय फल को प्राप्त करते हुए श्रीरामभद्र का कृपा-भाजन अवश्य होता है प्रात:काल उठकर अयोध्या दर्शन एवं सायंकाल शयन के पूर्व भक्तिपूर्वक हाथ जोड़कर श्री अवध को हृदय से स्मरण करते हुए जो प्राणी प्रतिदिन प्रणाम करते हैं वे वहीं बैठे ही अयोध्या के सम्पूर्ण तीर्थों के आचमन का फल पाते हैं। भगवान विष्णु के पुरी मय विग्रह में उज्जयिनी पुरी पादपद्म कांचपुरी (शिवकांची विष्णुकांची, मध्य भाग (कटि प्रदेश) है और द्वारकापुरी नाभि स्थान एवं मायापुरी (हरिद्वार) हृदय है, श्रीमथुरापुरी कण्ठ तथा श्रीवाराणसी (काशी) ही उनकी नासिका और यह श्री अयोध्या पुरी मस्तक स्थान है। इसीलिए सप्तपुरियों में सर्वश्रेष्ठा परा-मुक्तिदात्री मुनियों ने इसे कहा है। स्त्री हो या पुरुष जन्म से लेकर आज पर्यन्त कितने भी पाप क्यों न किये हों, श्रीअवध का दर्शन होते ही उनके सब पाप समूल नष्ट हो जाते हैं। जैसे देवताओं में सर्वश्रेष्ठ मधुसूदन हैं उसी प्रकार तीर्थों में श्रीअयोध्यापुरी प्रमुख है। पवित्रता पूर्वक नियमित आहार करते हुए द्वादश रात्रि अयोध्या में निवास करने पर सम्पूर्ण यज्ञों का फल प्राप्त कर प्राणी स्वर्गलोक को जाता है, सैकड़ों वर्ष यज्ञ करने पर जो फल होता है, श्रीअयोध्या में एक रात्रि निवास करने पर उससे कोटि गुना फल अधिक प्राप्त होता है। श्रीअयोध्या में पहुँचकर कुछ दान करना तथा वहां विशुद्ध भाव से निवास करना यह और भी उत्तम है। द्वादश रात्रि उपवास पूर्वक अथवा संयमित आहार करके सीमान्त अयोध्या की प्रदक्षिणा करने पर जम्बूदीप की समस्त प्रदक्षिणा का फल उसे मिलता है। यहाँ एक रात्रि निवास करने वाला भी पूतात्मा होकर अश्वमेध यज्ञ फल का भागी होते हुए सर्वकाम की सिद्धि पाता है उसकी दुर्गति कभी नहीं होती तथा उसे दिव्य देह की प्राप्ति होती है। यह सब श्रीअयोध्या दर्शन का अद्भुत महत्व है, जो कि संक्षेप में मैंने तुम्हें सुनाया है। वस्तुतः श्रीअयोध्या ही परब्रह्म स्वरूप एवं सरयू उनका सगुण साकार रूप यहाँ प्रवाहित है और यहाँ के सभी निवासीजन साक्षात् जगन्नाथ श्रीरामभद्रजी के स्वरूप हैं। यह त्रिसत्य मैं तुम्हें कहता हूँ इसे ध्रुव समझकर धारण करना चाहिए।
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